जयपुर।
एक तरफ कांग्रेस पार्टी देशभर में “संविधान बचाओ” और “संविधान खतरे में है” जैसे नारों के जरिए दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ खुद पार्टी का राजस्थान संगठन इन वर्गों की हिस्सेदारी को लेकर सवालों के घेरे में है।

राजस्थान कांग्रेस के 77 साल के इतिहास पर नजर डालें, तो आज तक न तो किसी दलित नेता को, न किसी आदिवासी को और न ही किसी मुस्लिम को प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) का अध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग और प्रतिनिधित्व को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

अब तक सिर्फ दो महिला अध्यक्ष, पर प्रतिनिधित्व का असंतुलन बरकरार

राजस्थान कांग्रेस के गठन के बाद से अब तक केवल दो महिला नेताओं को ही प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है—लक्ष्मी कुमारी चूंडावत और गिरिजा व्यास। चूंडावत पहली महिला अध्यक्ष थीं, जबकि गिरिजा व्यास अब तक की आखिरी महिला प्रदेशाध्यक्ष बनी थीं।
वहीं, पुरुष नेताओं में सबसे लंबा कार्यकाल पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का रहा, जो 8 वर्षों तक PCC चीफ रहे। इसके अलावा सचिन पायलट ने भी 6 साल 6 महीने का कार्यकाल पूरा किया, जबकि परसराम मदेरणा इस पद पर 5 साल 11 महीने तक रहे।

हाल ही में गोविंद सिंह डोटासरा इस क्लब में शामिल हुए हैं, जिन्होंने प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर लगातार 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है।

जातीय समीकरण: ब्राह्मण और जाट हावी, अन्य वर्ग हाशिए पर

  • ब्राह्मण वर्ग से अब तक 10 नेता PCC चीफ बन चुके हैं।
  • जाट समाज से 7 नेता इस पद तक पहुंचे हैं।
  • बणिया, रावणा राजपूत, कायस्थ, माली, कुमावत, गुर्जर और राजपूत वर्ग से एक-एक नेता को मौका मिला।
  • दलित, ST (आदिवासी) और मुस्लिम समाज से एक भी नेता अब तक प्रदेशाध्यक्ष नहीं बना।

यह आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले समुदायों को संगठनात्मक स्तर पर बराबरी का प्रतिनिधित्व अब तक नहीं दिया गया है।

राजनीतिक विश्लेषण: क्या है वजह?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय दशकों से कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक रहे हैं, लेकिन संगठनात्मक पदों पर उनकी उपेक्षा से अब यह वर्ग खुद को हाशिए पर महसूस करने लगा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस को अब केवल चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि संगठनात्मक भागीदारी में भी समावेशी सोच अपनानी होगी, अन्यथा यह ‘वोट तो दो, नेतृत्व मत लो’ की छवि बन सकती है।

नेता प्रतिपक्ष का संतुलन प्रयास

हालांकि, हाल ही में कांग्रेस ने पहली बार दलित वर्ग से आने वाले नेता को राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है, जिसे पार्टी की ओर से संतुलन साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। मगर इतने लंबे इतिहास में संगठन का सर्वोच्च पद इन वर्गों से एक बार भी नहीं भरे जाना अब भी चौंकाता है।