जयपुर, 19 जुलाई — नवजात शिशुओं में जानलेवा संक्रमण सेप्सिस को लेकर एक वैश्विक अध्ययन ने गंभीर चेतावनी दी है। प्रतिष्ठित ‘यूरोपियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, सेप्सिस के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावशीलता तेजी से घट रही है। नतीजा यह है कि इलाज के बावजूद नवजातों में मृत्युदर 10% से बढ़कर 30% तक पहुंच गई है।
यह अंतरराष्ट्रीय समीक्षा अध्ययन जयपुर के जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. राम मटोरिया और यूएई के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज सोनी द्वारा किया गया। उन्होंने वर्ष 2005 से 2024 तक के बीच हुए 37 शोध अध्ययनों और 8,954 नवजातों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। अध्ययन से यह साफ हुआ कि हर साल सेप्सिस के कारण दुनियाभर में दो लाख से ज्यादा नवजातों की मौत हो रही है।
एंटीबायोटिक असरहीन, संक्रमण बढ़ा
रिपोर्ट बताती है कि गंभीर संक्रमणों में दी जाने वाली ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स—जिन्हें पहले रामबाण माना जाता था—अब कम असरदार साबित हो रही हैं। परिणामस्वरूप, सेप्सिस से नवजातों की मौत का जोखिम लगातार बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति “एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीन” के बढ़ते प्रसार के कारण है, जो अस्पतालों और समुदायों में तेजी से फैल रहे हैं। नवजात शिशु इन प्रतिरोधी जीन के वाहक बन सकते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
इलाज का पैटर्न बदल रहा, फिर भी राहत नहीं
डॉ. मटोरिया के अनुसार, सेप्सिस के इलाज में दवाओं का असर घटने से इलाज का पैटर्न लगातार बदल रहा है:
- एमिनोग्लाइकोसाइड्स: उपयोग पर 20%–45% मृत्युदर
- सेफालोस्पोरिन्स (लैक्टम वर्ग): 15%–35% मृत्युदर
- कार्बापिनेम-प्रतिरोधी ग्राम-ऋणात्मक एंटीबायोटिक्स: 10% मृत्युदर
उन्होंने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल स्टूअर्डशिप कार्यक्रमों को सशक्त बनाने और स्थानीय स्तर पर सूक्ष्मजीव निगरानी में निवेश की आवश्यकता है, ताकि इलाज अनुभवजन्य और प्रभावी बने।
क्यों असफल हो रहा इलाज?
विशेषज्ञों का कहना है कि डॉक्टरों को अक्सर यह जानकारी ही नहीं मिल पाती कि संक्रमण किस बैक्टीरिया या जीवाणु के कारण हुआ है। इससे उपयुक्त एंटीबायोटिक का चयन मुश्किल होता है। इसके अलावा, नवजातों के अपरिपक्व अंग, स्वच्छता की कमी, जन्म के समय बैक्टीरियल उपनिवेशन, और माताओं द्वारा एंटीबायोटिक का पूर्व उपयोग संक्रमण के फैलाव को बढ़ाते हैं।
इम्यून सिस्टम पर भी हमला करता है सेप्सिस
सेप्सिस कोई साधारण संक्रमण नहीं है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में शुरू हो सकता है और आमतौर पर बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी से होता है। यह इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है, जिससे अंगों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। समय पर इलाज न होने पर यह जानलेवा बन जाता है।
संयोजन उपचार से उम्मीद
अध्ययन में यह भी सामने आया कि जब विभिन्न एंटीबायोटिक दवाओं का संयोजन (कॉम्बिनेशन थेरेपी) किया गया, तब शिशुओं के जीवित रहने की संभावना थोड़ी बेहतर रही। हालांकि, इलाज के दौरान नवजातों को आईसीयू में अधिक समय बिताना पड़ा, जिससे न सिर्फ लागत बढ़ी, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली पर भी दबाव बढ़ा।
- एंटीमाइक्रोबियल स्टूअर्डशिप कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाए
- रैपिड डायग्नोस्टिक तकनीकों में निवेश किया जाए
- स्थानीय सूक्ष्मजीव निगरानी मजबूत हो
- संक्रमण-रोकथाम नीतियां सशक्त की जाएं
डॉ. पंकज सोनी ने कहा, “नवजात जीवन बेहद नाजुक होता है। हर घंटा कीमती होता है। नीति-निर्माताओं को त्वरित निर्णय लेने होंगे, ताकि गंभीर संक्रमणों से नवजातों को बचाया जा सके।”











































































































































































































































































































































































































































































































































































































