भ्रष्टाचार और धांधली से बदनाम आयोग को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की कोशिश

जयपुर।
राजस्थान में सरकारी भर्तियों की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित संस्था राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए भजनलाल शर्मा सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में RPSC में सदस्यों की संख्या सात से बढ़ाकर दस करने का निर्णय लिया गया। सरकार का दावा है कि इससे न केवल भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता आएगी बल्कि लटकी हुई भर्तियों के निस्तारण में भी तेजी आएगी।

बदनामी का दंश झेल रही है RPSC

RPSC बीते कई वर्षों से लगातार विवादों और आरोपों से घिरी रही है। नकल, पक्षपात और पेपर लीक जैसे मामलों ने आयोग की साख को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। विशेष रूप से 2021 की राजस्थान पुलिस सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा में पेपर लीक और आयोग के ही दो सदस्यों — बाबूलाल कटारा और रामूराम रायका — की गिरफ्तारी ने युवाओं में भारी नाराजगी पैदा कर दी थी।

भ्रष्टाचार के विरोध में उठा जन आक्रोश

इन घटनाओं के बाद आयोग को भंग करने और इसका पुनर्गठन करने की मांगें तेज हो गईं। कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जन संघर्ष यात्रा’ निकाली थी, जिसमें RPSC का मुद्दा मुख्य रूप से शामिल रहा। युवाओं का आयोग से भरोसा लगभग उठ चुका था।

सरकार का प्रयास: पारदर्शिता और तेजी

राज्य की भाजपा सरकार ने चुनाव से पहले आयोग को सुधारने का वादा किया था। सत्ता में आने के बाद सरकार ने पहले पूर्व डीजीपी यू.आर. साहू को आयोग का नया अध्यक्ष नियुक्त किया — जिनकी छवि एक ईमानदार और सख्त अधिकारी की रही है। अब आयोग में तीन नए सदस्य और जोड़ने का फैसला लिया गया है।

नए बदलावों से क्या होंगे फायदे?

  • वर्कलोड कम होगा: मौजूदा सदस्यों पर से दबाव घटेगा।
  • इंटरव्यू प्रक्रिया तेज़ होगी: बोर्डों की संख्या बढ़ने से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के साक्षात्कार जल्दी पूरे हो सकेंगे।
  • भर्ती प्रक्रियाओं में गति: लंबित मामलों का समाधान तेजी से किया जा सकेगा।
  • नई भर्तियों की गति बढ़ेगी: प्रशासनिक स्तर पर फैसले जल्द लिए जा सकेंगे।

युवाओं का भरोसा जीतना सबसे बड़ी चुनौती

सरकार द्वारा किए जा रहे इन सुधार प्रयासों को सकारात्मक संकेत माना जा सकता है, लेकिन RPSC की छवि को दोबारा बनाने की राह आसान नहीं है। एक लंबे समय तक भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप झेलने वाली संस्था में फिर से विश्वास कायम करने के लिए सिर्फ संरचनात्मक नहीं, व्यवहारिक सुधार भी आवश्यक हैं।